जीवन में ज्ञान को बढ़ाने में नैतिक कहानियाँ (Moral Stories in Hindi) बहुत हीं महत्वपूर्ण माध्यम होती हैं | कहानियों से जो हमें सीख मिलती है, उसे हम अपने जीवन में अपनाकर आगे बढ़ सकते हैं |
नैतिक कहानियाँ किसी भी संदेश को एक दूसरे तक पहुँचाने का बहुत हीं उपयोगी जरिया हैं | हम कहानी के स्वरुप से अपने जीवन में किसी भी नजरिए को समझते हैं |
बच्चे नैतिक कहानियों को बड़ी गौर से सुनते और पढ़ते हैं, जिससे उनकी मानसिक स्तर में वृद्धि होती है | आज हम इस Article में बच्चों के लिए नैतिक कहानियों का बेहतरीन संग्रह लेकर आए हैं |
01 – खरगोश और कछुआ की कहानी | Khargosh aur Kachhua ki Kahani
एक नदी के किनारे घना जंगल था | उस जंगल में अनेक जंगली जानवर रहते थे | वहाँ एक खरगोश और एक कछुआ भी रहता था | खरगोश सबसे तेज़ दौड़ता था | वहीं दूसरी तरफ कछुआ बहुत धीरे – धीरे चलता था |
खरगोश हमेशा कछुए का मज़ाक उड़ाता था क्योंकि वह हमेशा धीरे चलता था | वह जब भी कछुए को देखता, उसका मज़ाक उडाता |खरगोश को स्वयं पर बहुत हीं ज़्यादा घमंड हो चूका था |
अब वह कछुए को नीचा साबित करने के लिए कछुए से जाकर कहा – धीमी रफ़्तार वाले कछुए, मैं तुम्हें खुद को साबित करने का मौका देता हूँ | तुम और मैं आपस में एक दौड़ प्रतियोगिता करेंगे | हम दोनों में जो जीतेगा वहीं हममें से ज़्यादा तेज़ होगा |
कछुआ बेचारा क्या करता, उसने उस प्रतियोगिता के लिए हाँ कर दी | अब अगले दिन दोनों के बीच प्रतियागिता होने वाली थी | जैसे हीं अगले दिन की शुरुआत सूरज की किरणों के साथ हुई |
जंगल के सारें जानवर एक जगह एकत्र होने लगे | जैसे हीं खरगोश आया, सब उसकी तारीफ करने लगे | सब यह सोचते थे कि खरगोश हीं जीतेगा |
फिर कुछ देर बाद कछुआ भी वहाँ पहुँचा | कछुए को देरी से आता देख सब उसे चिढ़ाने लगे | देखो ! यह आज के दिन भी देरी से आया है, ये कभी नहीं जीत सकता | कछुए ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया |
दोनों दौड़ के लिए एक साथ खड़े हुए और दोनों के बीच प्रतियोगिता शुरू हुई | प्रतियोगिता शुरू होते हीं खरगोश पूरी रफ़्तार के साथ दौड़ने लगा मगर कछुआ अपनी धीमी चाल से आगे बढ़ता रहा |
खरगोश बहुत तेज़ था उसने कम समय में लम्बी दूरी तय कर ली थी | कछुआ थोड़ा थक गया तब वह थोड़ी देर रुकने का मन बनाया | जब उसने पीछे मुड़कर देखा तो पीछे कछुआ भी नहीं दिखाई दे रहा था |
उस वक़्त कछुए ने सोचा – मै तो बहुत आगे हूँ | मैं यह प्रतियोगिता बड़ी आसानी से जीत जाऊँगा | मैं थोड़ी देर इस पेड़ के नीचे आराम कर लेता हूँ | अब खरगोश पेड़ के नीचे आराम करने लगा, आराम करते – करते उसे नींद आ गई और वह सो गया |
दूसरी तरफ कछुआ आराम से चलता हुआ अपने मंज़िल की तरफ बढ़ रहा था | रास्ते में उसने खरगोश को सोता हुआ देखा और वह आगे बढ़ चला |
अचानक खरगोश की नींद खुला और वह तुरंत भागा लेकिन जब वह अंतिम स्थान पर पहुँचा तो उसने देखा कि कछुआ वहाँ पहले से हीं चूका था और खरगोश वह प्रतियोगिता हार गया | खरगोश को मिली हार से उसका सारा घमंड ख़त्म हो गया और उसने कछुए से माफ़ी माँगी |
- कहानी से सीख – घमंड करना और दूसरे का मजाक उड़ाना अच्च्छी बात नहीं होती है |
02 – लोमड़ी और अंगूर की कहानी | Lomdi aur Angoor ki Kahani
भीषण गर्मी का दिन था | एक लोमड़ी भोजन की तलाश में जंगल में भटक रही थी | उसने हर जगह खोज की मगर उसे खाने को कुछ भी न मिला |
वह बहुत थक गई थी मगर उसकी तलाश जारी थी | अचानक वह एक अंगूर के बाग में पहुँच गई, जो रसीले अंगूरों से लदा हुआ था | लोमड़ी ने चारों तरफ देखा कि कोई शिकारी तो नहीं |
अंगूर देखकर लोमड़ी की आँखें चमक उठीं | अंगूरों की महक से उसे इस बात का अंदाजा हो गया कि अंगूर बहुत रसदार और मीठे हैं | उसने आस-पास देखा तो कोई नहीं था, इसलिए उसने अंगूर चुराकर खाने का फैसला किया |
उसने अंगूरों को खाने के लिए एक लंबी छलांग लगाई मगर वह अंगूरों तक नहीं पहुँच पाई और धड़ाम से जमीन पर आ गिरी | वह अपने पहले प्रयास में असफल हो गई | उसने सोचा क्यों न फिर से प्रयास किया जाए |
वह एक बार फिर जोश से खड़ी हुई और इस बार उसने अपनी पूरी ताकत के साथ अंगूरों की ओर छलांग लगाई मगर वह इस बार भी सफल नहीं हो सकी | परंतु उसने हार नहीं मानी | उसने सोचा कि अगर दो प्रयास विफल हो गए तो क्या, इस बार तो मैं सफल होकर रहूँगी |
फिर क्या था, लोमड़ी पुनः दोगुने जोश के साथ खड़ी हुई | इस बार उसने अपने शरीर की सारी ताकत को एकत्र कर एक लंबी छलाँग लगाई | उसे लगा था कि इस बार वह अंगूर को पाकर हीं रहेगी मगर ऐसा नहीं हुआ | इस बार की कोशिश भी नाकाम रही |
इतने प्रयास के बाद भी वह एक भी अंगूर हासिल नहीं कर पाई | उसके पैरों में चोट लगी, इसलिए उसने अंत में हार मान ली | वहाँ से जाते समय लोमड़ी ने कहा, “मुझे विश्वास है कि अंगूर खट्टे हैं |”
- कहानी से सीख – अगर हम किसी चीज को पा नहीं सकते तो हमें उस चीज के बारे में गलत राय नहीं बनानी चाहिए |
03 – चरवाहा और भेड़िया की कहानी | Bhediya Aaya Story in Hindi
एक समय की बात है | एक गाँव में एक चरवाहा रहता था | उसके पास बहुत सारी भेड़ थीं, वह उन्हें चराने पास के जंगल में जाया करता था |
हर रोज सुबह वह भेड़ों को जंगल ले जाता और शाम तक वापस घर लौट आता था | पूरा दिन भेड़ घास चरतीं और चरवाहा बैठे-बैठे ऊब जाता था |
ऊबने से बचने के लिए वह प्रतिदिन खुद का मनोरंजन के लिए नए-नए तरीके ढूँढ़ता रहता था | एक दिन उसे एक नई शरारत सूझी |
उसने सोचा, क्यों न इस बार मनोरंजन गाँव वालों के साथ किया जाए | यह सोच कर उसने ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना शुरू कर दिया कि बचाओ! बचाओ!! भेड़िया आया! भेड़िया आया!!
उसकी आवाज़ सुन कर गाँव के लोग लाठी-डंडे लेकर दौड़ते हुए वहाँ उसकी मदद करने पहुँच गए | जैसे हीं गाँव वाले वहाँ पहुँचे तो उन्होंने देखा कि यहाँ तो कोई भेड़िया नहीं है |
चरवाहा यह सब देखकर हँस रहा था – हा!हा!हा! बड़ा मज़ा आया | उसने गाँव वालों से बोला कि मैं तो मज़ाक कर रहा था | उसकी ऐसी बातें सुन गाँव वालों का चेहरा गुस्से से लाल-पीला हो गया |
एक व्यक्ति ने कहा कि हम सभी अपना काम छोड़ कर तुम्हें बचाने आए हैं और तुम हँसकर हमारा मजाक उड़ा रहे हो? ऐसा कह कर सब लोग वापस अपने काम पर लौट गए |
कुछ दिन बाद, गाँव वालों को फिर से चरवाहे की आवाज़ सुनाई दी | बचाओ! बचाओ! भेड़िया आया! बचाओ! इतना सुनते हीं गाँव वाले फिर से चरवाहे की मदद करने के लिए दौड़ पड़े |
दौड़ते हुए गाँव वालें वहाँ पहुँचे तो वो देखकर चकित रह गए | वो देखते हैं कि चरवाहा अपनी भेड़ों के साथ आराम से खड़ा है और गाँव वालों की तरफ़ देख कर ज़ोर-ज़ोर से हँस रहा है |
इस पर गाँव वालों को और गुस्सा आया | उन सभी ने चरवाहे को खूब खरी-खोटी सुनाई मगर चरवाहे को तब भी अक्ल न आई |
उसने फिर दो-तीन बार ऐसा हीं किया, जिसकी वजह से अब गाँव वालों का चरवाहे की बात से भरोसा उठ गया |
एक दिन गाँव वाले अपने खेतों में काम कर रहे थे और उन्हें पुनः चरवाहे के चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी |
बचाओ, बचाओ, भेड़िया आया! भेड़िया आया! मगर इस बार किसी ने भी उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया |
सभी आपस में बात करने लगे कि इसका तो काम ही है ऐसे हीं मज़ाक करना | चरवाहा लगातार चिल्ला रहा था – अरे कोई तो आओ, मेरी सहायता करो, इस भेड़िए को भगाओ मगर इस बार कोई भी उसकी सहायता करने नहीं पहुँचा |
चरवाहा चिल्लाता रह गया मगर गाँव वाले नहीं गए और भेड़िया उसकी कई भेड़ों को खा गया | यह सब देख चरवाहा रोने लगा |
जब देर रात तक चरवाहा घर नहीं आया, तो गाँव वाले उसे ढूँढते के लिए जंगल पहुँचे | वहाँ जाकर उन्होंने देखा कि चरवाहा बैठ कर रो रहा था |
चरवाहे को अपनी गलती का एहसास हो गया और उसने गाँव वालों से माँफ़ी माँगी | चरवाहा बोला – मुझे माफ कर दो भाइयों, मैंने झूठ बोल कर बहुत बड़ी गलती कर दी | मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था | आगे से इस तरह का कोई मजाक नहीं करूँगा |
- कहानी से सीख – झूठ बोलने वालों पर भरोसा करना मुश्किल होता है, इसलिए हमें हमेशा सच्चा रहना चाहिए |
04 – आलसी गधे की कहानी | Lazy Donkey Story in Hindi
एक व्यापारी के पास एक गधा था | वह बहुत आलसी तथा चालाक था | एक दिन उसके मालिक ने बाजार जाकर कुछ नमक बेचने की सोची | वह अपने गधे की पीठ पर नमक का एक बड़ा सा गट्ठर रखकर बाजार की ओर चल पड़ा |
जैसे हीं वे दोनों रास्ते में नदी को पार करने लगे कि अचानक गधे का पैर फिसल गया और वह नदी में गिर पड़ा | गधे को चोट तो नहीं लगी पर खड़े होने पर उसे ऐसा लगा कि उसकी पीठ पर रखे नमक की बोरी का बोझ कम हो गया है |
दूसरे दिन गधा फिर से नमक से भरा बोरा लेकर चल दिया | अब वह जानता था कि उसको क्या करना है ? गधे को अब अपनी पीठ पर लादा बोझ कम करना था |
अतः जब गधा और उसका मालिक नदी पार करने लगे तो गधा फिर से जानबूझकर नदी में फिसल कर गिर पड़ा | इस बार फिर से उसे अपनी कमर पर रखे नमक का बोझ कम लगने लगा है, ठीक हुआ |
गधे के मालिक ने उसकी चालाकी पहचान लिया | उसको बहुत क्रोध आया क्योंकि उसके नमक के बोरे में से काफी नमक बह गया था | उसने गधे को सबक सिखाना चाहा |
तीसरे दिन गधे का मालिक गधे की पीठ पर रुई से भरा बोरा रखकर बाज़ार चल पड़ा | गधे ने सोचा कि फिर से उसको अपनी चाल चलनी चाहिए |
जब वे दोनों नदी पार करने लगे तो गधा फिर से जानबूझकर नदी में फिसल गया ताकि उसकी कमर पर रखा बोझ कम हो जाए परंतु इस बार ऐसा नहीं हुआ |
उसकी कमर पर रखे बोरे में भरी रुई ने अपने अंदर पानी सोख लिया और रुई और भारी हो गया | गधे को तो अब चलना हीं था परंतु अब गधे को समझ आ गया था कि यदि हम चालाकी करके काम को टालते हैं तो हम और भी अधिक परेशानी या संकट में फँस सकते हैं |
- कहानी से सीख – बुरा करने वालों के साथ हमेशा बुरा हीं होता है |
05 – कौआ और लोमड़ी की कहानी | Kauwa aur Lomdi ki Kahani
एक समय की बात है | एक भूखा कौआ खाने की तलाश में यहाँ – वहाँ भटक रहा था तभी उसे एक सड़क पर एक रोटी मिली | उसने उस रोटी को अपनी चोंच से उठाया और दूर जंगल में जाकर एक पेड़ पर बैठकर खाने लगा | उसी समय एक लोमड़ी उसके पास आई |
लोमड़ी को बहुत जोरों से भूख लगी थी और उसने कौआ के मुँह में रोटी देखकर यह सोचा कि उस रोटी को वह खाएगी | यह विचार कर उस लोमड़ी ने कौवा से कहा – अरे कौआ ! आज तुम तो बहुत हीं अच्छे दिख रहे हो और मैंने सुना है कि तुम बहुत अच्छा गाते हो | क्या तुम मुझे गाकर सुनाओगे ? मैं तुम्हारा गाना सुनने के लिए तरस रही हूँ |
कौआ अपनी तारीफ सुनकर बहुत खुश हुआ और वह गाना गाने के लिए सोचने लगा मगर गाना गाने से पहले उसके दिमाग में विचार आया कि अगर वह गाना गाएगा तो उसके मुँह की रोटी नीचे गिर जाएगी और फिर लोमड़ी उसे खा जाएगी इसलिए कौए ने रोटी को अपने पैर के नीचे दबाया और गाना गाने लगा |
कौए के ऐसा करने पर लोमड़ी को समझ में आ गया कि उसकी तरकीब काम नहीं कर रही है तो उसने दूसरी तरकीब आज़माई | उसने कौए से कहा – अरे वाह ! कितना मधुर गाना गाते हो | मैंने सुना है कि तुम नाचते भी बहुत अच्छा हो, क्या तुम मुझे नाच कर दिखाओगे ?
अपनी इतनी ज़्यादा तारीफ़ सुनकर कौए को और भी ज़्यादा खुशी हुई | ख़ुशी के मारे वह यह भी भूल गया कि उसके पैर के नीचे रोटी है | कौआ नाचने लगा |
जैसे हीं कौए ने नाचने के लिए अपने दोनों पैर उठाए, रोटी नीचे गिर गई | तुरंत हीं लोमड़ी उस रोटी को खा गया औए कौआ मुँह देखता रह गया | अब कौए को समझ आया कि लोमड़ी उसे बेवकूफ बना रही थी |
- कहानी से सीख – अपनी झूठी तारीफ सुनकर हमें खुश नहीं होना चाहिए |
06 – शेर और खरगोश की कहानी | Sher aur Khargosh ki Kahani
जंगल में एक खूंखार शेर रहता था | वह रोज़ बहुत से जानवरों का शिकार करता और उन्हें मार देता था | पूरे जंगल में शेर का इतना खौफ था कि सारे जानवर उससे डरकर छुपा रहा करते थे | जंगल के जानवरों का जीना मुश्किल हो चूका था | वे भोजन के लिए भी निकलने से डरते थे |
ऐसे में जानवरों ने इस समस्या का समाधान निकालने के लिए एक सभा बुलाई | उस सभा में शेर के अलावा जंगल के सारे जानवर उपस्थित थे |
एक के बाद एक सबसे सुझाव देना शुरू किया मगर सबको लोमड़ी का सुझाव सबसे सही लगा | लोमड़ी ने अपने सुझाव में कहा था – हम प्रतिदिन शेर के पास एक जानवर भेजेंगे |
ऐसा करने से शेर को उसका खाना भी मिल जाएगा और वह अन्य जानवरों को नहीं मारेगा | इसके बाद हम जंगल में आराम से घूम सकेंगे और अपने खाने की तलाश बिना डरे कर सकेंगे |
सबने लोमड़ी की बात सुनी और उसकी बात पर सहमत हुए | अब यहीं बात बताने लोमड़ी शेर के पास पहुँची | लोमड़ी ने शेर से कहा – हम आपको रोज़ खाने के लिए एक जानवर भेज देंगे | आपको खाने के लिए इतना कष्ट नहीं करना पड़ेगा |
शेर ने कहा – ठीक है मगर इस बात का ध्यान रखना कि अगर एक दिन भी मेरे पास कोई जानवर नहीं पहुँचा तो मैं फिर से शिकार पर निकलूँगा और बहुत सारें जानवरों को मार कर खा जाऊँगा |
लोमड़ी शेर कि शर्तों को मान गई और वहाँ से चली गई | अब रोज़ शेर को एक – एक जानवर भेज दिया जाता और वह उन्हें मारकर खा जाता |
एक दिन बारी आई एक खरगोश की आई | वह खरगोश बहुत हीं चालाक था और हर वक़्त अपने दिमाग का इस्तेमाल किया करता था | इस बार भी उसने सोचा कि इस परेशानी से निकालने के लिए कुछ किया जाए |
शेर के पास जाने से पहले उसने सभी जानवरों से कहा – आज मेरी बारी आ हीं गई मगर आज या तो मैं बचूँगा या फिर शेर | ऐसा कहकर खरगोश वहाँ से निकल पड़ा |
रास्ते में चलते – चलते वह यह सोचने लगा कि आखिर वह किस तरह से उस शेर से छुटकारा पाएगा | चलते – चलते उसे एक कुआँ दिखा दिया | वह कुँए के पास गया ताकि वह वहाँ से पानी पी सके | पानी बहुत हीं नीचे था इसलिए वह पानी नहीं पी सका |
जब आज कुँए में झाँका तो उसे अपनी परछाई कुँए में नज़र आई | अपनी परछाई को देखकर उस खरगोश को एक तरकीब सूझी और वह सीधे शेर के पास जाने लगा |
वहीं दूसरी तरफ शेर की भूख बढ़ती जा रही थी | भूख लगने की वजह से उसका गुस्सा भी बढ़ते जा रहा था | मन में वह सोचने लगा कि वह आज फिर से शिकार कर बहुत सारें जानवरों को मार डालेगा |
खरगोश तुरंत हीं शेर के पास आ पहुँचा | खरगोश ने कहा – मैं आ गया मेरे मालिक | तुम्हें आने में इतनी देरी क्यों हुई ? मैं तुम्हारा कब से इंतज़ार कर रहा हूँ | मुझे ज़ोरो की भूख लगी है, शेर ने खरगोश से पूछा |
शेर को गुस्सा देखा खरगोश से उसे बताया | मैं पहले हीं आ जाता लेकिन इस जंगल में एक और शेर आ गया है | वह शेर आपसे भी ज़्यादा शक्तिशाली और बलवान है |
वह खुद को इस जंगल का असली राजा बताता है | उस शेर की वजह से मुझे छुपकर आना पड़ा और इस वजह से मुझे आने में देरी हो गई |
खरगोश की बातों को सुनकर शेर और भी ज़्यादा गुस्सा हो गया | शेर ने खरगोश से कहा – मेरे अलावा इस जंगल का राजा और कोई नहीं हो सकता | सिर्फ मैं इस जंगल का राजा हूँ | मुझे उस शेर के पास ले चलो उसे मैं अभी सबक सिखाता हूँ |
इसके बाद खरगोश उस शेर को उस कुँए के पास ले गया, जहाँ उसने पाने पीने के लिए गया था | खरगोश और शेर जैसे हीं उस कुँए के पास पहुँचे तब खरगोश ने ईशारे से शेर को बताया | खरगोश ने कहा – यही वह कुआँ है, जहाँ से वह शेर निकलता है और शिकार करके वापस चला जाता है |
अब शेर उस कुँए के पास गया और उसमें झाँक कर देखने लगा | कुँए में झाँकने के बाद उस शेर को अपनी परछाई दिखी जिसे वह दूसरा शेर समझने लगा |
गुस्से में आकर शेर ने दहाड़ लगाई। परछाई भी शेर की नक़ल करने लगा | इससे वह शेर चिढ़ने लगा और गुस्से में आकर उस कुँए में कूद गया |
शेर उससे लड़ना कहता था मगर कुँए में कूदने के बाद उसे पता चला कि वहाँ कोई नहीं है | इस तरह से शेर को अपनी जान गवानी पड़ी | शेर के मरने के बाद सारें जानवर अब पूरी तरह से आज़ाद थे | सबने खरगोश की सूझबूझ की तारीफ की और उसे धन्यवाद भी कहा |
- कहानी से सीख – चाहे कितनी भी बड़ी परेशानी क्यों न हो, हमें हमेशा सूझबूझ के साथ कोई भी कदम उठाना चाहिए |
07 – चींटी और टिड्डा की कहानी | Chiti aur Tidda ki Kahani
एक बार की बात है | गर्मी का मौसम था और एक चींटी कड़ी मेहनत से अपने लिए अनाज जुटा रही थी | वह सोच रही थी कि धूप तेज होने से पहले क्यों न अपना काम पूरा कर लिया जाए |
चींटी कई दिनों से अपने काम में जुटी थी | वह प्रतिदिन खेत से उठाकर दाने अपने बिल में जमा करती थी | वहीं, पास में ही एक टिड्डा रहता था | वह मस्ती में वह नाच रहा था और गाने गाकर जिंदगी के मजे ले रहा था |
पसीने से लथपथ चींटी अनाज ढोते-ढोते थक चुकी थी | पीठ पर अनाज लेकर चींटी बिल की ओर जा रही थी, तभी टिड्डा फुदककर उसके सामने आकर बोला, प्यारी चींटी! इतनी मेहनत क्यों कर रही हो? आओ मिलकर मजे करें |
चींटी ने टिड्डे की बातों को नजरअंदाज कर खेत से उठाकर एक-एक दाना अपने बिल में जमा करती रही | मस्ती में डूबा टिड्डा चींटी को देख हँसकर उसका मजाक उड़ाता |
उछल-कूद कर उसके रास्ते में आता और कहता, प्यारी चींटी! आओ मेरा गाना सुनो | कितना अच्छा और सुहाना मौसम है, क्यों मेहनत करके इस खूबसूरत दिन को बर्बाद कर रही हो?
टिड्डा की ऐसी हरकतों से चींटी परेशान हो गई | उसने समझाते हुए कहा, सुनो टिड्डा! ठंड का मौसम कुछ दिन बाद हीं आने वाला है तो बहुत बर्फ गिरेगी, उस समय कहीं पर भी अनाज नहीं मिलेगा | मेरी सलाह मानो और अपने लिए खाने का इंतजाम कर लो |
धीरे-धीरे कुछ दिन बाद गर्मी का मौसम खत्म हो गया | मस्ती में डूबे टिड्डे को एहसास हीं नहीं हुआ कि गर्मी कब खत्म हो गई | बरसात के बाद ठंड आ गई |
कोहरे की वजह से कभी कभी सूरज के दर्शन हो रहे थे | टिड्डे ने तो अपने खाने के लिए बिल्कुल भी अनाज नहीं जुटाया था | हर ओर बर्फ की मोटी चादर पड़ी थी | टिड्डा भूख से तड़पने लगा |
टिड्डे के पास ठंड से बचने का भी इंतजाम नहीं था तभी उसकी नजर चींटी पर पड़ी | चींटी अपने बिल में मजे से जमा किए हुए अनाज खा रही थी |
तब जाकर टिड्डे को एहसास हुआ कि समय बर्बाद करने का उसे फल मिल चुका है | भूख और ठंड से तड़पते टिड्डे की फिर चींटी ने मदद की |
चींटी ने टिड्डा खाने के लिए उसे कुछ अनाज दिए | चींटी ने ठंड से बचने के लिए खूब घास-फूस जुटाए थे | उसी से टिड्डे को भी अपना घर बनाने के लिए कहा |
- कहानी से सीख – अपने काम को पूरी मेहनत और लगन से करनी चाहिए |
08 – दो मेंढक की कहानी | Do Mendhak ki Kahani
एक बार की बात है | मेंढकों का एक झुंड किसी जंगल में तालाब की खोज में जा रहा था | आप तो जानते हीं हैं कि मेंढक कितना उछल कूद करते हैं |
इसी उछल कूद में दो मेंढक एक गड्ढे में जा गिरे | सारे मेंढक उस गड्ढे के किनारे इकट्ठे हो जाते हैं और सोचते हैं इनका बाहर निकलना मुश्किल है |
गड्ढे में गिरे मेंढक बाहर निकलने की कोशिश करते हैं मगर वह निकल नहीं पाते | इस पर बाहर वाले मेंढक उन दोनों का मजाक उड़ाते हैं | वह दोनों फिर से कोशिश करते हैं मगर फिर असफल हो जाते हैं |
ऐसा करते-करते कुछ देर हो जाती है, फिर भी वह बाहर नहीं आ पाते | दोनों में से एक मेंढक बाहर वाले मेंढकों की बात मानकर कोशिश करना बंद कर देता है और कुछ देर बाद उसकी मौत हो जाती है |
गड्ढे में बचा एक मेंढक हार नहीं मानता और कोशिश करता रहता है | आखिरकार काफी मेहनत के बाद वह बाहर आ हीं जाता है | जिसे देख बाहर के मेंढक हैरान हो जाते हैं |
उन्होंने उस मेंढक से पूछा कि तुम बाहर कैसे आ पाए | वह बोला कि मैं बहरा हूँ और जब मैंने देखा कि तुम लोग बाहर से चिल्ला रहे थे तो मुझे लगा कि तुम मुझे बाहर आने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हो | मैं कोशिश करता रहा और अंत में सफल हो हीं गया |
- कहानी से सीख –हमें जिंदगी में किसी भी मुश्किल से हर नहीं माननी चाहिए |
09 – लोमड़ी और सारस की कहानी | Lomdi aur Saras ki Kahani
किसी जंगल में एक लोमड़ी और सारस रहा करते थे | लोमड़ी बहुत चालाक थी | सारस बहुत समझदार और दूसरों से अच्छा व्यवहार करता था | वह कभी किसी को नीचा दिखाने की कोशिश नहीं करता |
एक दिन लोमड़ी सारस को नीचा दिखाने लिए उसके पास आई और उसे बोली – कैसे हो मेरे दोस्त ! मैं बहुत अच्छा हूँ | सारस ने लोमड़ी से कहा – तुम बताओ, यहाँ आज कैसे आना हुआ |
मैं यहाँ तुम्हें आमंत्रित करने आई हूँ | दरअसल मेरा जन्मदिन है और मैं अपने जन्मदिन के उपलक्ष्य में एक पार्टी का आयोजन कर रही हूँ और मैं अपने जन्मदिन के लिए सबको आमंत्रित कर रही हूँ |
मैं चाहती हूँ कि तुम भी मेरे जन्मदिन पर आओ | जी हाँ ! ठीक है, मैं जरूर आऊँगा – सारस ने कहा | ऐसा कहकर लोमड़ी वहाँ से चली गई फिर सारस अगले दिन का इंतजार करने लगा |
जैसे हीं दिन की शुरुआत हुई, सारस तैयार होने लगा था ताकि वह उसके जन्मदिन के दावत में जा सके | पार्टी का समय आ चुका था, अब सारस लोमड़ी के घर पहुँचा | लोमड़ी ने सारस का स्वागत किया और उसे भोजन करने को कहा |
लोमड़ी ने चालाकी से सारस को एक प्लेट में खाना दिया | सारस पतली प्लेट में खाना देखकर घबरा गया क्योंकि सारस की चोंच बहुत लंबी थी और वह इस तरह से प्लेट से खाना नहीं खा सकता था |
सारस हमेशा अपने पतली सुराही में खाना खाया करता था | ऐसे में सारस समझ चुका था कि लोमड़ी उसका मजाक उड़ाने के लिए और उसे नीचा दिखाने के लिए यहाँ बुलाई है |
लोमड़ी ने सारस से पुछा – क्या बात है ? आज का खाना अच्छा नहीं है क्या ? खाओ – खाओ, इसे हमने बहुत अच्छे से बनवाया है तुम्हें जरूरत हो तो मैं और लेकर आ सकती हूँ |
नहीं – नहीं, इतना हीं काफी है | ऐसा कहकर सारस चुपके से चला गया | कुछ दिनों बाद सारस का भी जन्मदिन आया | इस अवसर पर वह लोमड़ी को बेवकूफ बनाना चाहता था | उसने भी जाकर लोमड़ी को आमंत्रित किया और उसे कहा – कल मेरा जन्मदिन है तुम आना |
हाँ, मैं जरूर आऊँगी – लोमड़ी ने कहा | अगले दिन लोमड़ी तैयार होकर सारस के घर गई ताकि वह उसका जन्मदिन मना सके | सारस ने उसे खाने के लिए खाना दिया मगर सारस ने लोमड़ी को खाना एक पतली सी सुराही में दिया |
लोमड़ी प्लेट में खाया करती थी | ऐसा करके सारस उसे बेवकूफ बनाना चाहता था | लोमड़ी समझ चुकी थी कि सारस वैसा हीं कर रहा है जैसा उसने उसके साथ किया था | लोमड़ी समझ चुकी थी कि उसे बेवकूफ बनाया जा रहा है इसीलिए वह बहाना बनाकर वहाँ से चली गई |
- कहानी से सीख – हमें किसी मेहमान को नीचा नहीं दिखाना चाहिए, बल्कि उसका सम्मान करना चाहिए |
10 – ईमानदार लकड़हारे की कहानी | Imaandar Lakadhare ki Kahani
एक बार की बात है | एक गाँव में रामू नाम का एक लकड़हारा रहता था | वो प्रतिदिन जंगल में लकड़ी काटने के लिए जाता और उन्हें बेचकर जो पैसे मिलते उससे अपना जीवन यापन करता |
उसकी दिनचर्या सालों से ऐसी हीं चल रही थी | एक दिन लकड़हारा नदी के बगल में लगे एक पेड़ की टहनियों को काटरहा था | लकड़ी काटते-काटते अचानक उसकी कुल्हाड़ी नदी में जा गिरी |
वह झट से पेड़ से नीचे उतरा और अपनी कुल्हाड़ी को ढूंढने लगा | उसे लगा था कि उसकी कुल्हाड़ी आसपास हीं गिरी होगी और ढूंढने पर मिल जाएगी |
वास्तव में ऐसा कुछ हुआ नहीं, क्योंकि नदी काफी गहरी और तेज बहाव वाली थी | बड़ी देर तक लकड़हारा अपनी कुल्हाड़ी को ढूंढता रहा, मगर जब कुल्हाड़ी नहीं मिली तो उसे लगा कि अब उसकी कुल्हाड़ी कभी वापस नहीं मिलेगी |
इसके बाद वो काफी उदास हो गया | उसे पता था कि उसके पास इतने पैसे भी नहीं हैं कि वो नई कुल्हाड़ी खरीद सके | अब वो अपनी दयनीय स्थिति पर सोचकर नदी किनारे बैठे-बैठे रोने लगा | रामू की रोने की आवाज सुनकर वहाँ नदी की देवी प्रकट हुईं |
उन्होंने लकड़हारे से पूछा – क्या हो गया बेटा? तुम इतना क्यों रो रहे हो? नदी की देवी के सवाल पर लकड़हारे ने उन्हें अपनी कुल्हाड़ी गिरने वाली बात बता दी |
नदी की देवी ने पूरी बात सुनते हीं कुल्हाड़ी को ढूंढने में लकड़हारे की मदद करने की बात कही और वहां से चली गईं | कुछ देर बाद नदी की देवी नदी से बाहर आईं और उन्होंने रामू से कहा कि मैं तुम्हारी कुल्हाड़ी लेकर आ गई हूँ |
नदी के देवी की बातें सुनकर लकड़हारे खुस हो गया तभी लकड़हारे ने देखा कि नदी की देवी ने अपने हाथों में सुनहरी रंग की कुल्हाड़ी ले रखी है |
दुखी मन से रामू ने कहा – यह सुनहरी रंग की कुल्हाड़ी मेरी तो बिल्कुल भी नहीं है | यह सोने की कुल्हाड़ी जरूर किसी अमीर इंसान कीहोगी | लकड़हारे की बात सुनकर नदी की देवी दोबारा से गायब हो गईं |
कुछ देर बाद नदी की देवी फिर नदी से बाहर निकलीं | इस बार उनके हाथों में चांदी की कुल्हाड़ी थी | इस कुल्हाड़ी को देखकर भी लकड़हारे खुश नहीं हुआ |
उसने कहा कि ये भी कुल्हाड़ी मेरी नहीं है | ये किसी और की कुल्हाड़ी होगी, आप उसी को ये कुल्हाड़ी दे दीजिएगा | मुझे तो अपनी हीं कुल्हाड़ी ढूंढनी है | इस बार भी लकड़हारे की बात सुनकर नदी की देवी फिर वहां चली गईं |
नदी में गई देवी इस बार बहुत देर बाद बाहर आईं | इस बार देवी को देखते हीं लकड़हारे के चेहरे पर बड़ी-सी मुस्कान आ गई | उसने नदी की देवी से कहा कि इस बार आपके हाथ में लोहे की कुल्हाड़ी है, जो कि मेरी कुल्हाड़ी है |
लकड़हारे की इतनी ईमानदारी को देखकर नदी की देवी बहुत हीं प्रसन्न हुईं | उन्होंने लकड़हारे से कहा कि तुम्हारे मन में बिल्कुल भी लालच नहीं है |
तुम्हारी जगह कोई और होता तो सोने की कुल्हाड़ी तुरंत ले लेता मगर तुमने ऐसा बिल्कुल भी नहीं किया | चांदी की कुल्हाड़ी को भी तुमने लेने से मना कर दिया |
तुम्हारे इतने पवित्र और सच्चे मन से मैं काफी खुश हूँ | मैं तुम्हें उपहार में सोने और चांदी दोनों हीं कुल्हाड़ी देना चाहती हूँ | तुम अपनी लोहे की कुल्हाड़ी के साथ इन्हें भी अपने पास ईनाम के तौर पर रख लो |
- कहानी से सीख – ईमानदारी से बड़ी दौलत इस दुनिया में कुछ नहीं है |
11 – सच्ची मित्रता की कहानी | Sacchi Mitrata par Kahani
एक गाँव में दो बच्चे रहते थे | एक का नाम राम और दूसरे का नाम श्याम था | जिनकी उम्र क्रमशः 10 और 07 साल थी तथा उन दोनों में बहुत गहरी दोस्ती थी |
हमेशा साथ – साथ खेलते , साथ – साथ पढ़ने जाते और भी बहुत समय एक दूसरे के साथ हीं बिताते | एक बार की बात है | दोनों खेलते – खेलते एक कुएँ के पास पहुँच गये, जो कि गाँव से बाहर खेतों के पास था |
किसान या कोई यात्री वहाँ पानी पीने के लिए कुआँ का उपयोग करते थे | अचानक खेलते – खेलते राम का पैर फिसला और वह कुआँ में जा गिरा | श्याम अचानक ये सब देखकर घबरा गया |
राम कुआँ में गिर गया पर उसे तैरना नहीं आता था | वो अन्दर से चिल्लाने लगा, बचाओ – बचाओ | इधर श्याम को कुछ समझ में नही आ रहा था कि वह कैसे राम को कुआँ से बाहर निकाले |
तब तक उसकी नजर वहाँ रखी रस्सी पर पड़ी, जिसमें साथ में बाल्टी भी बंधी थी | उसने रस्सी खोली ओर कुआं में फेंक दिया और राम को बोला कि रस्सी पकड़ लो |
राम ने रस्सी पकड़ ली और श्याम उस रस्सी को ऊपर खींचने लगा, मगर राम श्याम से उम्र और वजन दोनों में बड़ा था | श्याम रस्सी को नही खींच पा रहा था मगर वहाँ पर कोई भी नहीं था, जो उसकी मदद कर सके |
श्याम लगातार जैसे – तैसे रस्सी खींचता रहा, बड़ी देर की कड़ी मेहनत के बाद उसने राम को बहार निकाल हीं लिया | बाहर आकर राम ने श्याम को जोर से गले लगाया और धन्यवाद कहा और दोनों घर आ गए |
जब यह बात उन दोनों ने घरवालों को बताया तो कोई भी उनकी बात पर भरोसा हीं नही कर रहा था | धीरे-धीरे यह बात पूरे गाँव में फैल गई |
कोई भी इस बात को मानने को तैयार हीं नहीं था कि श्याम अपने से भारी वजन वाले राम को कैसे कुआं से रस्सी के सहारे खींचकर बाहर निकाल सकता है |
फिर सभी लोग गाँव के सबसे बुजुर्ग और बुद्धिमान व्यक्ति रामू काका के यहाँ पहुँचे और सारी बातें बताई | रामू काका ने कहा की यह बात इकदम सही है की श्याम ने राम को बचाया है |
इस पर गाँव वालों ने पूछा किआखिर इस बात पर कैसे विश्वास कर लिया जाए तो रामू काका ने कहा कि यह बात एकदम सही है, क्योंकि वहाँ पर राम ओर श्याम के आलावा ओर कोई नहीं था |
जो श्याम को यह कह सकता था कि तू यह नहीं कर सकता | यहीं कारण है कि श्याम ने यह कर दिखाया जो कि बहुत मुश्किल था |
- कहानी से सीख – मनुष्य के लिए कोई भी कार्य करना असंभव नहीं है |
12 – साँप और चींटी की कहानी | Snake and Ant Story in Hindi
जंगल में तरह – तरह के जानवर रहा करते है हैं | कुछ जानवर पेड़ – पौधे खाते हैं और कुछ अन्य जानवरों को खाते हैं | एक जंगल में एक छोटा सा साँप अपने बिल में रहता था |
वह चूहों, बतख आदि छोटे – छोटे जानवरों को खाता था | उसका डर बस छोटे जानवरों तक सीमित था | धीरे – धीरे वह बड़ा होने लगा | अब शरीर बड़ा होने के साथ – साथ उसे ज़्यादा खाना खाने की जरुरत पड़ने लगी |
ऐसे में वह एक दिन में बहुत सारे छोटे जानवरों को खा जाता | वह साँप चिडियाँ, चूहे, खरगोश,बतख आदि अन्य जानवरों को खाया करता | खाने के बाद अपने बिल में घुस जाता और सोता रहता | जंगल के सारे जानवर उससे परेशान रहने लगे |
धीरे – धीरे समय निकलता गया और साँप का शरीर और भी बड़ा होता चला गया | अब उसे अपने बिल में घुसने में मुश्किल होती थी | कभी – कभी तो वह अपने बिल में फँस जाया करता था |
ऐसे में वह साँप दूसरे बिल की तालाश में इधर – उधर भटकने लगा | रेंगता हुआ वह एक बरगद के पेड़ के पास पहुँचा | उसने वहाँ देखा की वहाँ चीटियों ने बहुत हीं बड़ा बिल बनाया था |
साँप ने सोचा – यह बिल मेरे लिए बहुत सही रहेगा | यह बड़ा भी है और मेरे शरीर के लिया उत्तम भी है | यह सोचकर वह चीटिंयों के पास गया और उनसे बोला – आज से मैं इसी बिल में रहूँगा, तुम सब यहाँ से चली जाओ |
बरगद का पेड़ तो बहुत बड़ा होता हीं है, जिसमें एक साथ बहुत से जानवर रह सकते है | उस बरगद के पेड़ पर बहुत से जानवर और पक्षी रहा करते थे | जब उन सभी ने सुना कि वह साँप यहाँ रहना चहता है तो वे सब डर गए |
सब सोचने लगे कि कैसे भी यह साँप यहाँ से चला जाए | चीटियों ने जैसे हीं साँप की बात सुनी तो वे गुस्सा हो गई और सबसे मिलकर एक साथ साँप पर हमला कर दिया |
चीटियों ने साँप के शरीर को पूरा ढक लिया और वे सब साँप को काटने लगी | ऐसे में साँप छटपटाने लगा और तुरंत वहाँ से भाग गया | इस तरह से छोटी सी दिखने वाली चींटियों ने एक बड़े से साँप को भगा दिया |
- कहानी से सीख –किसी के शरीर को देखकर उसे नीचा नहीं समक्षना चाहिए |
13 – लालची कुत्ते की कहानी | Greedy Dog Story In Hindi
एक भूखा कुत्ता खाने की तलाश में यहाँ – वहाँ भटक रहा था | जब वह खाने की तलाश कर रहा था तब वह एक कसाई खाने के पास जा पहुँचा |
एक कसाई ने उस कुत्ते को एक हड्डी दिया | जिसमें थोड़ा सा मांस लगा हुआ था | कुत्ते ने उस हड्डी में लगे हुए मांस को खाया फिर उसके बाद वह उस हड्डी को चबाने लगा |
हड्डी को चबाते – चबाते उस कुत्ते को प्यास लगी तो वह उठकर एक नदी के पास गया | कुत्ते ने हड्डी को अपने मुँह में हीं दबाकर रखा हुआ था |
पानी पीने से पहले वह सोचने लगा कि अगर वह हड्डी को थोड़ी देर के लिए भी नीचे रखेगा तो दूसरा कुत्ता आकर उसे ले जा सकता है | इसीलिए वह आस – पास देखने लगा कि कोई कुत्ता है भी या नहीं |
तभी अचानक उसकी नजर नदी पर बने हुए परछाई पर पड़ी | यह परछाई उस कुत्ते की ही थी मगर वह समझ नहीं पाया कि यह उसकी परछाई है |
तब उसने सोचा कि यह कोई और कुत्ता है, जिसके मुंह में भी एक हड्डी दबी हुई है | वह कुत्ता लालच में आकर उस हड्डी को भी हथियाने की सोच रहा था |
ऐसा करने के लिए उसने अपना मुँह खोला और उसके मुँह की हड्डी जाकर नदी में गिर गई | इस तरह से उसके पास जो हड्डी थी वह भी उसके हाथ से चली गई |
- कहानी से सीख – लालच बुरी बला है |
14 – मेहनत की कमाई | Mehnat ki Kamai
एक नगर में एक धनी व्यापारी रहता था | उसने अपने व्यापार से काफी धन कमाया था किंतु अब वह बूढ़ा हो गया था और उससे इतना बड़ा व्यापार संभलता नहीं था |
वह चाहता था कि अब उसका पुत्र व्यापार सँभाले, पर उसका पुत्र बड़ा हीं आरामतलब और आलसी था | मेहनत करने का ना तो उसे अभ्यास था और नहीं उसकी इच्छा |
पिता ने उसे बहुत समझाया, परंतु उस पर कोई असर नहीं हुआ | एक दिन प्रातः काल व्यापारी ने अपने पुत्र को अपने पास बुलाया और कहा – “बेटा जाओ और आज कमा कर लाओ वरना रात का भोजन नहीं मिलेगा |”
चिंता में डूबा उदास चेहरा लिए बेटा सीधा अपनी माँ के पास गया और रोने लगा | माँ ने पुत्र की आँख में आँसू देखे तो उसकी ममता उमड़ पड़ी | पुत्र की परेशानी सुनकर उसने अपना संदूक खोला और एक अशर्फी निकाल कर उसके हाथ पर रख दी |
रात को पिता ने बेटे से पूछा – “आज तुमने कितना कमाया ?” बेटे ने जेब से अशर्फी निकालकर अपने पिता के सामने रख दी | पिता ने अपने बेटे से कहा – “जाओ इस अशर्फी कुएँ में फेंक दो |”
लड़के ने बड़ी तत्परता से पिता की आज्ञा का पालन किया | अनुभवी पिता सारी बात समझ गया | दूसरे दिन उसने अपनी पत्नी से पुत्र को अशरफी देने से मना कर दिया |
उसने पुत्र को फिर बुलाया और कहा – जाओ बेटा, कुछ कमा कर लो तभी तुम्हें रात का भोजन मिलेगा |” बेटा फिर अपनी माँ के पास पहुँचा | माँ ने आज उसे पैसे देने से मना कर दिया |
लड़का बहन के पास जाकर रोने लगा | भाई को रोता देख बहन ने अपना सिंगारदान खोला और उसमें से एक रूपया निकालकर भाई को दे दिया |
रात को पिता ने पुत्र से पूछा – बेटा, आज तुमने क्या कमाया ? लड़के ने जेब से एक रूपया निकाल कर पिता के सामने रख दिया | पिता ने कहा – इसे कुएँ में फेंक आओ |
लड़के ने फिर तुरंत पिता की आज्ञा का पालन किया | अनुभवी पिता सब कुछ समझ गया | उसने अपनी बेटी को बुलाकर भाई को पैसे देने से मना कर दिया |
अगले दिन पिता ने फिर पुत्र को बुलाया और पहले दिन वाली बात दोहरा दी | लड़का बारी-बारी अपनी माँ और बहन के पास गया किंतु दोनों ने उसे पैसे देने से मना कर दिया |
दोनों ने उसे समझाया कि वह कुछ काम करें | लड़का उदास हो गया | सारा दिन बीत गया | उसके आँसुओं में माँ – बहन का दिल ना पसीजा | विवश होकर वह उठा और कुछ काम ढूंढने बाजार की ओर निकल पड़ा |
दिन ढल रहा था | थोड़ी देर में हीं अंधेरा हो जाएगा | कुछ न कुछ तो करना हीं पड़ेगा | इसी चिंता में उसकी भेंट एक सेठ से हो गई | सेठ के पूछने पर उसने बताया कि उसे काम चाहिए | सेठ ने कहा – तुम मेरा यह सामान उठाकर घर तक ले चलो, मैं तुम्हें चवन्नी दूँगा |
व्यापारी के लड़के ने सामान उठाया | सामान काफी भारी था | सेठ के घर तक पहुँचते – पहुँचते उसके पाँव काँपने लगे और वह पसीने से लथपथ हो गया |
चवन्नी लेकर वह घर पहुँचा | रात को पिता ने पुत्र को बुलाकर पूछा – आज तुमने क्या कमाया ? पुत्र ने जेब से चवन्नी निकालकर सामने रख दी | पहले दिन की तरह पिता ने कहा – इसे कुएँ में फेंक दो |
लड़के की आँखें आसुओं से भीग गई | वह चुपचाप सिर झुकाए खड़ा रहा | पिता ने अपनी बात दोहराई – इस पैसे को कुएँ में फेंक आओ |
लड़के ने हिम्मत बटोरी और कहा – इस पैसे को कमाने में मेरी गर्दन टूट गई और आपका कह रहे हैं कि इसे कुएँ में फेंक आओ | अनुभवी पिता सब कुछ समझ गया | अगले दिन उसने अपना कारोबार अपने पुत्र को सौंप दिया |
- कहानी से सीख – परिश्रम का मूल्य अनमोल होता है |
15 – एकता में शक्ति | Ekta mein Shakti
गंगाशरण के पाँच लड़के थे – मोहन, सोहन शिवपाल, रमेश और श्याम | यह पाँचों लड़के परस्पर झगड़ते रहते थे | छोटी-छोटी बातों पर आपस में ‘तू-तू’, ‘मैं-मैं’ करने लगते और मारपीट कर लेते थे |
गंगाशरण अपने लड़कों के झगड़े से बहुत परेशान था | वह उन्हें बहुत समझाता पर वह नहीं मानते थे | एक दिन उसे एक उपाय सूझा, उसने लकड़ी की कुछ पतली – पतली सूखी टहनियों को इकट्ठा कर एक छोटा गट्ठर बना लिया |
फिर अपने पांचों पुत्रों को बुलाकर उसने कहा, “तुम लोगों को में से जो इस गट्ठर को तोड़ देगा, उसे पुरस्कार मिलेगा |”
पाँचों लड़के आपस में झगड़ने लगे कि गट्ठर को पहले मैं तोडूँगा क्योंकि उन्हें डर था कि यदि दूसरा भाई पहले तोड़ देगा तो पुरस्कार उसी को मिल जाएगा |
उन्हें झगड़ते हुए देख गंगाशरण कहा, “पहले छोटे भाई श्याम को गट्ठर तोड़ने दो |” श्याम ने गट्ठर उठा लिया और जोर लगाने लगा | दाँत दबाकर, आँख मीचकर उसने बहुत जोर लगाया |
सिर पर पसीना आ गया किंतु गट्ठर की टहनियाँ नहीं टूटीं | उसने गट्ठर रमेश को दे दिया | रमेश ने भी जोर लगाया परंतु वह भी नहीं तोड़ सका |
इस प्रकार सभी लड़कों ने बारी-बारी से गट्ठर लिया और तोड़ने का प्रयास किया किंतु उनमें से कोई भी उसे तोड़ने में सफल नहीं हो सका |
गंगाशरण ने गट्ठर खोलकर एक – एक टहनी सभी लड़कों को दी और कहा, “अब इसे तोड़ों |” इस बार सभी ने टहनियों को आसानी से तोड़ दिया |
अब गंगाशरण ने समझाया, “देखो ! टहनियाँ जब तक एक साथ थीं, तुम लोगों में से कोई उन्हें नहीं तोड़ सका और जब यह अलग – अलग हो गई तो तुमने सरलता से इनको तोड़ दिया |”
इसी प्रकार यदि तुम लोग आपस में लड़ते झगड़ते रहोगे और अलग – अलग रहोगे तो लोग तुम्हें आसानी से दबा लेंगे | यदि तुम लोग परस्पर मेल से रहोगे तो कोई भी तुमसे शत्रुता करने का साहस नहीं करेगा |
गंगाशरण के लड़कों ने उस दिन से आपस में झगड़ना छोड़ दिया | वह प्रेम भाव से रहने लगे | बच्चों ! इसलिए कहा गया है कि संगठन में हीं शक्ति है, अतः हमें परस्पर मिलकर रहना चाहिए |
- कहानी से सीख – एकता में बहुत शक्ति होती है |
Conclusion –
आप सभी को बच्चों के लिए यह नैतिक कहानियाँ (Moral Stories in Hindi for Kids) कैसी लगीं | अगर आप कोई कहानी लिखवाना चाहते हैं तो कृप्या Comment कर जरुर बताएँ | अगर यह नैतिक कहानियाँ आपको अच्छी लगीं तो अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करें |
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