बच्चे नैतिक कहानियों को बड़ी गौर से सुनते और पढ़ते हैं, जिससे उनकी मानसिक स्तर में वृद्धि होती है | आज हम इस Article में बच्चों के लिए दस नैतिक कहानियों का खज़ाना लेकर आए हैं, जिनसे बच्चों को प्रेरणादायक सीख मिलेगी |
01 – शेर और चूहे की कहानी
एक बार की बात है | किसी जंगल में एक चूहा रहता था | एक दिन जब वो अपनी बिल की ओर जा रहा था, तो उसने एक शेर को आराम करते देखा |
शेर को आराम से सोते हुए देख चूहे के मन में शरारत सूझी | चूहा शेर के शरीर पर चदकर उछल-कूद करने लगा | चूहे की शरारत की वजह से शेर की नींद खुल गई और उसने चूहे को अपने पंजों में दबोच लिया |
चूहे ने जब शेर के पंजे में फँस गया, तो उसे समझ आया कि वह शेर के गुस्से से अब नहीं बच सकता और आज उसकी मौत पक्की है | चूहा बहुत डर गया और रो-रोकर शेर से अनुरोध करने लगा कि शेर जी, मुझे मत मारो, मुझसे गलती हो गई, कृप्या मुझे जाने दो |
अगर आज आप मुझे जाने देंगे, तो मैं आपसे वादा करता हूँ कि आपके इस उपकार के बदले भविष्य में जब भी आपको कोई जरूरत होगी तो मैं आपकी सहायता करूँगा | चूहे की ऐसी बातें सुनकर शेर को हंसी आ गई |
शेर ने कहा कि तुम तो इतने छोटे हो, मेरी मदद क्या करोगे | चूहे का अनुरोध सुनकर शेर को उस पर दया आ गई और उसने चूहे को छोड़ दिया | चूहे ने शेर को धन्यवाद कहकर वहां से चला गया | कुछ समय बाद एक दिन शेर खाने की तलाश में इधर-उधर घूम रहा था, तभी अचानक किसी शिकारी द्वारा फैलाए जाल में फँस गया |
शेर ने खुद को जाल से निकालने की बहुत कोशिश की मगर निकलने में असमर्थ रहा | बहुत देर प्रयास करने के बाद शेर ने मदद के लिए दहाड़ लगानी शुरू की | उसी समय वो चूहा उधर से हीं गुजर रहा था कि तब तक उसे शेर की दहाड़ सुनाई दी |
वह दौड़कर शेर के पास पहुँचा और शेर को जाल में फंसा देख चौंक गया | उसने बिना देर किए अपने नुकीले दांतों से जाल को काटना शुरू कर दिया और कुछ हीं समय में उसने पूरे जाल को काटकर शेर को आजाद कर दिया |
चूहे की इस सहायता से शेर की आँखें भर आईं और नम आँखों से शेर ने चूहे का शुक्रिया अदा किया और दोनों वहाँ से चले गए | अब शेर और चूहा अच्छे दोस्त बन गए |
- कहानी से सीख – हमें किसी के शरीर के आधार पर उसे छोटा या बड़ा नहीं समझना चाहिए | हमें किसी की क्षमता को कम नहीं आँकना चाहिए |
02 – दो मित्र और भालू की कहानी
किसी गाँव में दो लड़के रहते थे | एक लड़के का नाम राम तो दूसरे लड़के का नाम श्याम था | उन दोनों लड़को में बहुत हीं गहरी दोस्ती थी | उनकी दोस्ती की मिसाल पूरे गाँव में दिया जाता था |
सभी लोग कहते थे कि दोस्ती हो तो इनकी दोस्ती जैसी | एक दिन दोनों को अपने गाँव से किसी दूसरे गाँव जाना था | वह दोनों साथ में जाने लगे | उस रास्ते में एक जंगल पड़ता था | वह जंगल के रास्ते से जा रहे थे तब तक उन्होंने अचानक एक भालु को सामने से आते हुए देखा | अब वे सोचने लगे कि क्या करे?
श्याम खुद को भालू से बचाने के लिए पेड़ पर चढ़ गया मगर राम को पेड़ पर चढ़ना नहीं आता था | उसने श्याम से मदद माँगी मगर श्याम ने मदद करने से मना कर दिया | अचानक राम को याद आया कि भालू मरे हुए लोगों को नहीं खाते |
राम जमीन पर सोकर अपने साँस को रोक लिया | वह जमीन पर इस तरह से सोया था कि जैसे वह मर चुका है | भालू राहुल के पास आकर राहुल को सूंघने लगा मगर उसने राम को कुछ किए बिना वहाँ से चला गया |
उसे लगा कि यह मर चूका है | भालू के जाने के बाद श्याम पेड़ से नीचे उतरा | श्याम ने राम से पूछा – भालू तुम्हारे कान में क्या कह रहा था? तो राम ने कहा कि भालू कह रहा था कि किसी दोस्त पर भरोसा मत करना |
- कहानी से सीख – सच्चा मित्र वहीं होता है, जो मुसीबत के समय साथ देता है |
03 – लोमड़ी और अंगूर की कहानी
भीषण गर्मी का दिन था | एक लोमड़ी भोजन की तलाश में जंगल में भटक रही थी | उसने हर जगह खोज की मगर उसे खाने को कुछ भी न मिला | वह बहुत थक गई थी मगर उसकी तलाश जारी थी | अचानक वह एक अंगूर के बाग में पहुँच गई, जो रसीले अंगूरों से लदा हुआ था | लोमड़ी ने चारों तरफ देखा कि कोई शिकारी तो नहीं |
अंगूर देखकर लोमड़ी की आँखें चमक उठीं | अंगूरों की महक से उसे इस बात का अंदाजा हो गया कि अंगूर बहुत रसदार और मीठे हैं | उसने आस-पास देखा तो कोई नहीं था, इसलिए उसने अंगूर चुराकर खाने का फैसला किया |
उसने अंगूरों को खाने के लिए एक लंबी छलांग लगाई मगर वह अंगूरों तक नहीं पहुँच पाई और धड़ाम से जमीन पर आ गिरी | वह अपने पहले प्रयास में असफल हो गई | उसने सोचा क्यों न फिर से प्रयास किया जाए |
वह एक बार फिर जोश से खड़ी हुई और इस बार उसने अपनी पूरी ताकत के साथ अंगूरों की ओर छलांग लगाई मगर वह इस बार भी सफल नहीं हो सकी | परंतु उसने हार नहीं मानी | उसने सोचा कि अगर दो प्रयास विफल हो गए तो क्या, इस बार तो मैं सफल होकर रहूँगी |
फिर क्या था, लोमड़ी पुनः दोगुने जोश के साथ खड़ी हुई | इस बार उसने अपने शरीर की सारी ताकत को एकत्र कर एक लंबी छलाँग लगाई | उसे लगा था कि इस बार वह अंगूर को पाकर हीं रहेगी मगर ऐसा नहीं हुआ | इस बार की कोशिश भी नाकाम रही |
इतने प्रयास के बाद भी वह एक भी अंगूर हासिल नहीं कर पाई | उसके पैरों में चोट लगी, इसलिए उसने अंत में हार मान ली | वहाँ से जाते समय लोमड़ी ने कहा, “मुझे विश्वास है कि अंगूर खट्टे हैं |”
- कहानी से सीख – अगर हम किसी चीज को पा नहीं सकते तो हमें उस चीज के बारे में गलत राय नहीं बनानी चाहिए |
04 – चरवाहा और भेड़िया की कहानी
एक समय की बात है | एक गाँव में एक चरवाहा रहता था | उसके पास बहुत सारी भेड़ थीं, वह उन्हें चराने पास के जंगल में जाया करता था | हर रोज सुबह वह भेड़ों को जंगल ले जाता और शाम तक वापस घर लौट आता था | पूरा दिन भेड़ घास चरतीं और चरवाहा बैठे-बैठे ऊब जाता था |
ऊबने से बचने के लिए वह प्रतिदिन खुद का मनोरंजन के लिए नए-नए तरीके ढूँढ़ता रहता था | एक दिन उसे एक नई शरारत सूझी | उसने सोचा, क्यों न इस बार मनोरंजन गाँव वालों के साथ किया जाए | यह सोच कर उसने ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना शुरू कर दिया कि बचाओ! बचाओ!! भेड़िया आया! भेड़िया आया!!
उसकी आवाज़ सुन कर गाँव के लोग लाठी-डंडे लेकर दौड़ते हुए वहाँ उसकी मदद करने पहुँच गए | जैसे हीं गाँव वाले वहाँ पहुँचे तो उन्होंने देखा कि यहाँ तो कोई भेड़िया नहीं है |
चरवाहा यह सब देखकर हँस रहा था – हा!हा!हा! बड़ा मज़ा आया | उसने गाँव वालों से बोला कि मैं तो मज़ाक कर रहा था | उसकी ऐसी बातें सुन गाँव वालों का चेहरा गुस्से से लाल-पीला हो गया |
एक व्यक्ति ने कहा कि हम सभी अपना काम छोड़ कर तुम्हें बचाने आए हैं और तुम हँसकर हमारा मजाक उड़ा रहे हो? ऐसा कह कर सब लोग वापस अपने काम पर लौट गए |
कुछ दिन बाद, गाँव वालों को फिर से चरवाहे की आवाज़ सुनाई दी | बचाओ! बचाओ! भेड़िया आया! बचाओ! इतना सुनते हीं गाँव वाले फिर से चरवाहे की मदद करने के लिए दौड़ पड़े |
दौड़ते हुए गाँव वालें वहाँ पहुँचे तो वो देखकर चकित रह गए | वो देखते हैं कि चरवाहा अपनी भेड़ों के साथ आराम से खड़ा है और गाँव वालों की तरफ़ देख कर ज़ोर-ज़ोर से हँस रहा है |
इस पर गाँव वालों को और गुस्सा आया | उन सभी ने चरवाहे को खूब खरी-खोटी सुनाई मगर चरवाहे को तब भी अक्ल न आई | उसने फिर दो-तीन बार ऐसा हीं किया, जिसकी वजह से अब गाँव वालों का चरवाहे की बात से भरोसा उठ गया |
एक दिन गाँव वाले अपने खेतों में काम कर रहे थे और उन्हें पुनः चरवाहे के चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी | बचाओ, बचाओ, भेड़िया आया! भेड़िया आया! मगर इस बार किसी ने भी उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया |
सभी आपस में बात करने लगे कि इसका तो काम ही है ऐसे हीं मज़ाक करना | चरवाहा लगातार चिल्ला रहा था – अरे कोई तो आओ, मेरी सहायता करो, इस भेड़िए को भगाओ मगर इस बार कोई भी उसकी सहायता करने नहीं पहुँचा |
चरवाहा चिल्लाता रह गया मगर गाँव वाले नहीं गए और भेड़िया उसकी कई भेड़ों को खा गया | यह सब देख चरवाहा रोने लगा | जब देर रात तक चरवाहा घर नहीं आया, तो गाँव वाले उसे ढूँढते के लिए जंगल पहुँचे | वहाँ जाकर उन्होंने देखा कि चरवाहा बैठ कर रो रहा था |
चरवाहे को अपनी गलती का एहसास हो गया और उसने गाँव वालों से माँफ़ी माँगी | चरवाहा बोला – मुझे माफ कर दो भाइयों, मैंने झूठ बोल कर बहुत बड़ी गलती कर दी | मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था | आगे से इस तरह का कोई मजाक नहीं करूँगा |
- कहानी से सीख – झूठ बोलने वालों पर भरोसा करना मुश्किल होता है, इसलिए हमें हमेशा सच्चा रहना चाहिए |
05 – आलसी गधे की कहानी
एक व्यापारी के पास एक गधा था | वह बहुत आलसी तथा चालाक था | एक दिन उसके मालिक ने बाजार जाकर कुछ नमक बेचने की सोची | वह अपने गधे की पीठ पर नमक का एक बड़ा सा गट्ठर रखकर बाजार की ओर चल पड़ा |
जैसे हीं वे दोनों रास्ते में नदी को पार करने लगे कि अचानक गधे का पैर फिसल गया और वह नदी में गिर पड़ा | गधे को चोट तो नहीं लगी पर खड़े होने पर उसे ऐसा लगा कि उसकी पीठ पर रखे नमक की बोरी का बोझ कम हो गया है |
दूसरे दिन गधा फिर से नमक से भरा बोरा लेकर चल दिया | अब वह जानता था कि उसको क्या करना है ? गधे को अब अपनी पीठ पर लादा बोझ कम करना था | अतः जब गधा और उसका मालिक नदी पार करने लगे तो गधा फिर से जानबूझकर नदी में फिसल कर गिर पड़ा |
इस बार फिर से उसे अपनी कमर पर रखे नमक का बोझ कम लगने लगा है, ठीक हुआ | गधे के मालिक ने उसकी चालाकी पहचान लिया | उसको बहुत क्रोध आया क्योंकि उसके नमक के बोरे में से काफी नमक बह गया था |
उसने गधे को सबक सिखाना चाहा | तीसरे दिन गधे का मालिक गधे की पीठ पर रुई से भरा बोरा रखकर बाज़ार चल पड़ा | गधे ने सोचा कि फिर से उसको अपनी चाल चलनी चाहिए | जब वे दोनों नदी पार करने लगे तो गधा फिर से जानबूझकर नदी में फिसल गया ताकि उसकी कमर पर रखा बोझ कम हो जाए परंतु इस बार ऐसा नहीं हुआ |
उसकी कमर पर रखे बोरे में भरी रुई ने अपने अंदर पानी सोख लिया और रुई और भारी हो गया | गधे को तो अब चलना हीं था परंतु अब गधे को समझ आ गया था कि यदि हम चालाकी करके काम को टालते हैं तो हम और भी अधिक परेशानी या संकट में फँस सकते हैं |
- कहानी से सीख – बुरा करने वालों के साथ हमेशा बुरा हीं होता है |
06 – कौआ और लोमड़ी की कहानी
एक समय की बात है | एक भूखा कौआ खाने की तलाश में यहाँ – वहाँ भटक रहा था तभी उसे एक सड़क पर एक रोटी मिली | उसने उस रोटी को अपनी चोंच से उठाया और दूर जंगल में जाकर एक पेड़ पर बैठकर खाने लगा | उसी समय एक लोमड़ी उसके पास आई |
लोमड़ी को बहुत जोरों से भूख लगी थी और उसने कौआ के मुँह में रोटी देखकर यह सोचा कि उस रोटी को वह खाएगी | यह विचार कर उस लोमड़ी ने कौवा से कहा – अरे कौआ ! आज तुम तो बहुत हीं अच्छे दिख रहे हो और मैंने सुना है कि तुम बहुत अच्छा गाते हो | क्या तुम मुझे गाकर सुनाओगे ? मैं तुम्हारा गाना सुनने के लिए तरस रही हूँ |
कौआ अपनी तारीफ सुनकर बहुत खुश हुआ और वह गाना गाने के लिए सोचने लगा मगर गाना गाने से पहले उसके दिमाग में विचार आया कि अगर वह गाना गाएगा तो उसके मुँह की रोटी नीचे गिर जाएगी और फिर लोमड़ी उसे खा जाएगी इसलिए कौए ने रोटी को अपने पैर के नीचे दबाया और गाना गाने लगा |
कौए के ऐसा करने पर लोमड़ी को समझ में आ गया कि उसकी तरकीब काम नहीं कर रही है तो उसने दूसरी तरकीब आज़माई | उसने कौए से कहा – अरे वाह ! कितना मधुर गाना गाते हो | मैंने सुना है कि तुम नाचते भी बहुत अच्छा हो, क्या तुम मुझे नाच कर दिखाओगे ?
अपनी इतनी ज़्यादा तारीफ़ सुनकर कौए को और भी ज़्यादा खुशी हुई | ख़ुशी के मारे वह यह भी भूल गया कि उसके पैर के नीचे रोटी है | कौआ नाचने लगा | जैसे हीं कौए ने नाचने के लिए अपने दोनों पैर उठाए, रोटी नीचे गिर गई | तुरंत हीं लोमड़ी उस रोटी को खा गया औए कौआ मुँह देखता रह गया | अब कौए को समझ आया कि लोमड़ी उसे बेवकूफ बना रही थी |
- कहानी से सीख – अपनी झूठी तारीफ सुनकर हमें खुश नहीं होना चाहिए |
07 – शेर और खरगोश की कहानी
जंगल में एक खूंखार शेर रहता था | वह रोज़ बहुत से जानवरों का शिकार करता और उन्हें मार देता था | पूरे जंगल में शेर का इतना खौफ था कि सारे जानवर उससे डरकर छुपा रहा करते थे | जंगल के जानवरों का जीना मुश्किल हो चूका था | वे भोजन के लिए भी निकलने से डरते थे |
ऐसे में जानवरों ने इस समस्या का समाधान निकालने के लिए एक सभा बुलाई | उस सभा में शेर के अलावा जंगल के सारे जानवर उपस्थित थे | एक के बाद एक सबसे सुझाव देना शुरू किया मगर सबको लोमड़ी का सुझाव सबसे सही लगा | लोमड़ी ने अपने सुझाव में कहा था – हम प्रतिदिन शेर के पास एक जानवर भेजेंगे |
ऐसा करने से शेर को उसका खाना भी मिल जाएगा और वह अन्य जानवरों को नहीं मारेगा | इसके बाद हम जंगल में आराम से घूम सकेंगे और अपने खाने की तलाश बिना डरे कर सकेंगे | सबने लोमड़ी की बात सुनी और उसकी बात पर सहमत हुए |
अब यहीं बात बताने लोमड़ी शेर के पास पहुँची | लोमड़ी ने शेर से कहा – हम आपको रोज़ खाने के लिए एक जानवर भेज देंगे | आपको खाने के लिए इतना कष्ट नहीं करना पड़ेगा |
शेर ने कहा – ठीक है मगर इस बात का ध्यान रखना कि अगर एक दिन भी मेरे पास कोई जानवर नहीं पहुँचा तो मैं फिर से शिकार पर निकलूँगा और बहुत सारें जानवरों को मार कर खा जाऊँगा |
लोमड़ी शेर कि शर्तों को मान गई और वहाँ से चली गई | अब रोज़ शेर को एक – एक जानवर भेज दिया जाता और वह उन्हें मारकर खा जाता | एक दिन बारी आई एक खरगोश की आई |
वह खरगोश बहुत हीं चालाक था और हर वक़्त अपने दिमाग का इस्तेमाल किया करता था | इस बार भी उसने सोचा कि इस परेशानी से निकालने के लिए कुछ किया जाए | शेर के पास जाने से पहले उसने सभी जानवरों से कहा – आज मेरी बारी आ हीं गई मगर आज या तो मैं बचूँगा या फिर शेर |
ऐसा कहकर खरगोश वहाँ से निकल पड़ा | रास्ते में चलते – चलते वह यह सोचने लगा कि आखिर वह किस तरह से उस शेर से छुटकारा पाएगा | चलते – चलते उसे एक कुआँ दिखा दिया | वह कुँए के पास गया ताकि वह वहाँ से पानी पी सके |
पानी बहुत हीं नीचे था इसलिए वह पानी नहीं पी सका | जब आज कुँए में झाँका तो उसे अपनी परछाई कुँए में नज़र आई | अपनी परछाई को देखकर उस खरगोश को एक तरकीब सूझी और वह सीधे शेर के पास जाने लगा |
वहीं दूसरी तरफ शेर की भूख बढ़ती जा रही थी | भूख लगने की वजह से उसका गुस्सा भी बढ़ते जा रहा था | मन में वह सोचने लगा कि वह आज फिर से शिकार कर बहुत सारें जानवरों को मार डालेगा |
खरगोश तुरंत हीं शेर के पास आ पहुँचा | खरगोश ने कहा – मैं आ गया मेरे मालिक | तुम्हें आने में इतनी देरी क्यों हुई ? मैं तुम्हारा कब से इंतज़ार कर रहा हूँ | मुझे ज़ोरो की भूख लगी है, शेर ने खरगोश से पूछा |
शेर को गुस्सा देखा खरगोश से उसे बताया | मैं पहले हीं आ जाता लेकिन इस जंगल में एक और शेर आ गया है | वह शेर आपसे भी ज़्यादा शक्तिशाली और बलवान है | वह खुद को इस जंगल का असली राजा बताता है | उस शेर की वजह से मुझे छुपकर आना पड़ा और इस वजह से मुझे आने में देरी हो गई |
खरगोश की बातों को सुनकर शेर और भी ज़्यादा गुस्सा हो गया | शेर ने खरगोश से कहा – मेरे अलावा इस जंगल का राजा और कोई नहीं हो सकता | सिर्फ मैं इस जंगल का राजा हूँ | मुझे उस शेर के पास ले चलो उसे मैं अभी सबक सिखाता हूँ |
इसके बाद खरगोश उस शेर को उस कुँए के पास ले गया, जहाँ उसने पाने पीने के लिए गया था | खरगोश और शेर जैसे हीं उस कुँए के पास पहुँचे तब खरगोश ने ईशारे से शेर को बताया | खरगोश ने कहा – यही वह कुआँ है, जहाँ से वह शेर निकलता है और शिकार करके वापस चला जाता है |
अब शेर उस कुँए के पास गया और उसमें झाँक कर देखने लगा | कुँए में झाँकने के बाद उस शेर को अपनी परछाई दिखी जिसे वह दूसरा शेर समझने लगा | गुस्से में आकर शेर ने दहाड़ लगाई। परछाई भी शेर की नक़ल करने लगा | इससे वह शेर चिढ़ने लगा और गुस्से में आकर उस कुँए में कूद गया |
शेर उससे लड़ना कहता था मगर कुँए में कूदने के बाद उसे पता चला कि वहाँ कोई नहीं है | इस तरह से शेर को अपनी जान गवानी पड़ी | शेर के मरने के बाद सारें जानवर अब पूरी तरह से आज़ाद थे | सबने खरगोश की सूझबूझ की तारीफ की और उसे धन्यवाद भी कहा |
- कहानी से सीख – चाहे कितनी भी बड़ी परेशानी क्यों न हो, हमें हमेशा सूझबूझ के साथ कोई भी कदम उठाना चाहिए |
08 – चींटी और टिड्डा की कहानी
एक बार की बात है | गर्मी का मौसम था और एक चींटी कड़ी मेहनत से अपने लिए अनाज जुटा रही थी | वह सोच रही थी कि धूप तेज होने से पहले क्यों न अपना काम पूरा कर लिया जाए |
चींटी कई दिनों से अपने काम में जुटी थी | वह प्रतिदिन खेत से उठाकर दाने अपने बिल में जमा करती थी | वहीं, पास में ही एक टिड्डा रहता था | वह मस्ती में वह नाच रहा था और गाने गाकर जिंदगी के मजे ले रहा था |
पसीने से लथपथ चींटी अनाज ढोते-ढोते थक चुकी थी | पीठ पर अनाज लेकर चींटी बिल की ओर जा रही थी, तभी टिड्डा फुदककर उसके सामने आकर बोला, प्यारी चींटी! इतनी मेहनत क्यों कर रही हो? आओ मिलकर मजे करें |
चींटी ने टिड्डे की बातों को नजरअंदाज कर खेत से उठाकर एक-एक दाना अपने बिल में जमा करती रही | मस्ती में डूबा टिड्डा चींटी को देख हँसकर उसका मजाक उड़ाता |
उछल-कूद कर उसके रास्ते में आता और कहता, प्यारी चींटी! आओ मेरा गाना सुनो | कितना अच्छा और सुहाना मौसम है, क्यों मेहनत करके इस खूबसूरत दिन को बर्बाद कर रही हो?
टिड्डा की ऐसी हरकतों से चींटी परेशान हो गई | उसने समझाते हुए कहा, सुनो टिड्डा! ठंड का मौसम कुछ दिन बाद हीं आने वाला है तो बहुत बर्फ गिरेगी, उस समय कहीं पर भी अनाज नहीं मिलेगा | मेरी सलाह मानो और अपने लिए खाने का इंतजाम कर लो |
धीरे-धीरे कुछ दिन बाद गर्मी का मौसम खत्म हो गया | मस्ती में डूबे टिड्डे को एहसास हीं नहीं हुआ कि गर्मी कब खत्म हो गई | बरसात के बाद ठंड आ गई | कोहरे की वजह से कभी कभी सूरज के दर्शन हो रहे थे |
टिड्डे ने तो अपने खाने के लिए बिल्कुल भी अनाज नहीं जुटाया था | हर ओर बर्फ की मोटी चादर पड़ी थी | टिड्डा भूख से तड़पने लगा | टिड्डे के पास ठंड से बचने का भी इंतजाम नहीं था तभी उसकी नजर चींटी पर पड़ी | चींटी अपने बिल में मजे से जमा किए हुए अनाज खा रही थी |
तब जाकर टिड्डे को एहसास हुआ कि समय बर्बाद करने का उसे फल मिल चुका है | भूख और ठंड से तड़पते टिड्डे की फिर चींटी ने मदद की | चींटी ने टिड्डा खाने के लिए उसे कुछ अनाज दिए | चींटी ने ठंड से बचने के लिए खूब घास-फूस जुटाए थे | उसी से टिड्डे को भी अपना घर बनाने के लिए कहा |
- कहानी से सीख – अपने काम को पूरी मेहनत और लगन से करनी चाहिए |
09 – मेहनत की कमाई
एक नगर में एक धनी व्यापारी रहता था | उसने अपने व्यापार से काफी धन कमाया था किंतु अब वह बूढ़ा हो गया था और उससे इतना बड़ा व्यापार संभलता नहीं था | वह चाहता था कि अब उसका पुत्र व्यापार सँभाले, पर उसका पुत्र बड़ा हीं आरामतलब और आलसी था | मेहनत करने का ना तो उसे अभ्यास था और नहीं उसकी इच्छा |
पिता ने उसे बहुत समझाया, परंतु उस पर कोई असर नहीं हुआ | एक दिन प्रातः काल व्यापारी ने अपने पुत्र को अपने पास बुलाया और कहा – “बेटा जाओ और आज कमा कर लाओ वरना रात का भोजन नहीं मिलेगा |”
चिंता में डूबा उदास चेहरा लिए बेटा सीधा अपनी माँ के पास गया और रोने लगा | माँ ने पुत्र की आँख में आँसू देखे तो उसकी ममता उमड़ पड़ी | पुत्र की परेशानी सुनकर उसने अपना संदूक खोला और एक अशर्फी निकाल कर उसके हाथ पर रख दी |
रात को पिता ने बेटे से पूछा – “आज तुमने कितना कमाया ?” बेटे ने जेब से अशर्फी निकालकर अपने पिता के सामने रख दी | पिता ने अपने बेटे से कहा – “जाओ इस अशर्फी कुएँ में फेंक दो |”
लड़के ने बड़ी तत्परता से पिता की आज्ञा का पालन किया | अनुभवी पिता सारी बात समझ गया | दूसरे दिन उसने अपनी पत्नी से पुत्र को अशरफी देने से मना कर दिया |
उसने पुत्र को फिर बुलाया और कहा – जाओ बेटा, कुछ कमा कर लो तभी तुम्हें रात का भोजन मिलेगा |” बेटा फिर अपनी माँ के पास पहुँचा | माँ ने आज उसे पैसे देने से मना कर दिया | लड़का बहन के पास जाकर रोने लगा |
भाई को रोता देख बहन ने अपना सिंगारदान खोला और उसमें से एक रूपया निकालकर भाई को दे दिया | रात को पिता ने पुत्र से पूछा – बेटा, आज तुमने क्या कमाया ? लड़के ने जेब से एक रूपया निकाल कर पिता के सामने रख दिया | पिता ने कहा – इसे कुएँ में फेंक आओ |
लड़के ने फिर तुरंत पिता की आज्ञा का पालन किया | अनुभवी पिता सब कुछ समझ गया | उसने अपनी बेटी को बुलाकर भाई को पैसे देने से मना कर दिया | अगले दिन पिता ने फिर पुत्र को बुलाया और पहले दिन वाली बात दोहरा दी | लड़का बारी-बारी अपनी माँ और बहन के पास गया किंतु दोनों ने उसे पैसे देने से मना कर दिया |
दोनों ने उसे समझाया कि वह कुछ काम करें | लड़का उदास हो गया | सारा दिन बीत गया | उसके आँसुओं में माँ – बहन का दिल ना पसीजा | विवश होकर वह उठा और कुछ काम ढूंढने बाजार की ओर निकल पड़ा |
दिन ढल रहा था | थोड़ी देर में हीं अंधेरा हो जाएगा | कुछ न कुछ तो करना हीं पड़ेगा | इसी चिंता में उसकी भेंट एक सेठ से हो गई | सेठ के पूछने पर उसने बताया कि उसे काम चाहिए | सेठ ने कहा – तुम मेरा यह सामान उठाकर घर तक ले चलो, मैं तुम्हें चवन्नी दूँगा |
व्यापारी के लड़के ने सामान उठाया | सामान काफी भारी था | सेठ के घर तक पहुँचते – पहुँचते उसके पाँव काँपने लगे और वह पसीने से लथपथ हो गया | चवन्नी लेकर वह घर पहुँचा |
रात को पिता ने पुत्र को बुलाकर पूछा – आज तुमने क्या कमाया ? पुत्र ने जेब से चवन्नी निकालकर सामने रख दी | पहले दिन की तरह पिता ने कहा – इसे कुएँ में फेंक दो | लड़के की आँखें आसुओं से भीग गई | वह चुपचाप सिर झुकाए खड़ा रहा | पिता ने अपनी बात दोहराई – इस पैसे को कुएँ में फेंक आओ |
लड़के ने हिम्मत बटोरी और कहा – इस पैसे को कमाने में मेरी गर्दन टूट गई और आपका कह रहे हैं कि इसे कुएँ में फेंक आओ | अनुभवी पिता सब कुछ समझ गया | अगले दिन उसने अपना कारोबार अपने पुत्र को सौंप दिया |
- कहानी से सीख – परिश्रम का मूल्य अनमोल होता है |
10 – एकता में शक्ति
गंगाशरण के पाँच लड़के थे – मोहन, सोहन शिवपाल, रमेश और श्याम | यह पाँचों लड़के परस्पर झगड़ते रहते थे | छोटी-छोटी बातों पर आपस में ‘तू-तू’, ‘मैं-मैं’ करने लगते और मारपीट कर लेते थे |
गंगाशरण अपने लड़कों के झगड़े से बहुत परेशान था | वह उन्हें बहुत समझाता पर वह नहीं मानते थे | एक दिन उसे एक उपाय सूझा, उसने लकड़ी की कुछ पतली – पतली सूखी टहनियों को इकट्ठा कर एक छोटा गट्ठर बना लिया | फिर अपने पांचों पुत्रों को बुलाकर उसने कहा, “तुम लोगों को में से जो इस गट्ठर को तोड़ देगा, उसे पुरस्कार मिलेगा |”
पाँचों लड़के आपस में झगड़ने लगे कि गट्ठर को पहले मैं तोडूँगा क्योंकि उन्हें डर था कि यदि दूसरा भाई पहले तोड़ देगा तो पुरस्कार उसी को मिल जाएगा |उन्हें झगड़ते हुए देख गंगाशरण कहा, “पहले छोटे भाई श्याम को गट्ठर तोड़ने दो |”
श्याम ने गट्ठर उठा लिया और जोर लगाने लगा | दाँत दबाकर, आँख मीचकर उसने बहुत जोर लगाया | सिर पर पसीना आ गया किंतु गट्ठर की टहनियाँ नहीं टूटीं | उसने गट्ठर रमेश को दे दिया | रमेश ने भी जोर लगाया परंतु वह भी नहीं तोड़ सका |
इस प्रकार सभी लड़कों ने बारी-बारी से गट्ठर लिया और तोड़ने का प्रयास किया किंतु उनमें से कोई भी उसे तोड़ने में सफल नहीं हो सका | गंगाशरण ने गट्ठर खोलकर एक – एक टहनी सभी लड़कों को दी और कहा, “अब इसे तोड़ों |” इस बार सभी ने टहनियों को आसानी से तोड़ दिया |
अब गंगाशरण ने समझाया, “देखो ! टहनियाँ जब तक एक साथ थीं, तुम लोगों में से कोई उन्हें नहीं तोड़ सका और जब यह अलग – अलग हो गई तो तुमने सरलता से इनको तोड़ दिया |”
इसी प्रकार यदि तुम लोग आपस में लड़ते झगड़ते रहोगे और अलग – अलग रहोगे तो लोग तुम्हें आसानी से दबा लेंगे | यदि तुम लोग परस्पर मेल से रहोगे तो कोई भी तुमसे शत्रुता करने का साहस नहीं करेगा |
गंगाशरण के लड़कों ने उस दिन से आपस में झगड़ना छोड़ दिया | वह प्रेम भाव से रहने लगे | बच्चों ! इसलिए कहा गया है कि संगठन में हीं शक्ति है, अतः हमें परस्पर मिलकर रहना चाहिए |
- कहानी से सीख – एकता में बहुत शक्ति होती है |
Conclusion –
हाँ तो अब आप ये बताइए कि इन दस नैतिक कहानियों को पढ़कर आपको कैसा लगा | अपनी राय हमसे जरुर साझा करें | अगर आप कोई कहानी लिखवाना चाहते हैं तो कृप्या Comment कर जरुर बताएँ |